हिंदी कविता जगत के महान कवि डॉक्टर कुमार विश्वास जी की ख्याति से तो आज पूरा विश्व रूबरू है। उनकी प्रसिद्ध कविताओ का पूरा भारत दीवाना है। इसी कड़ी में पाठको की बढ़ती मांग पर हमारी टीम प्रस्तुत कर रही है कुमार साहब की एक अमूल्य कृति :
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये।
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।।इतनी रंग बिरंगी दुनिया...
ऐसे उजले लोग मिले जो, अंदर से बेहद काले थे।
ऐसे चतुर मिले जो मन से सहज सरल भोले भाले थे।।
ऐसे धनी मिले जो कंगालों से भी ज्यादा रीते थे।
ऐसे मिले फ़क़ीर जो सोने के घट में पानी पीते थे।।
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये।
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया..
ऐसे चतुर मिले जो मन से सहज सरल भोले भाले थे।।
ऐसे धनी मिले जो कंगालों से भी ज्यादा रीते थे।
ऐसे मिले फ़क़ीर जो सोने के घट में पानी पीते थे।।
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये।
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया..
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जिनको जगत विजेता समझा, मन के द्वारे हारे निकले।
जो हारे हारे लगते थे, अंदर से ध्रुव तारे निकले।।
जिनको पतवारें सौपी थी, वो भंवर के सूदखोर थे।
जिनको भंवर समझ डरता था, आखिर वही किनारे निकले।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया...
जो हारे हारे लगते थे, अंदर से ध्रुव तारे निकले।।
जिनको पतवारें सौपी थी, वो भंवर के सूदखोर थे।
जिनको भंवर समझ डरता था, आखिर वही किनारे निकले।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया...
वो मंजिल तक क्या पहुंचेगे, जिनको खुद रास्ता भटकाए।
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया...
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया...
कुमार जी की कवितायेँ व् कवी सम्मलेन पढ़ने के लिए जुड़े रहे।
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